आगरा में पेठा जगह जगह ठेलों पर बिकता देखा जा सकता है। रेलवे स्टेशन पर यदि 10 मिनट का भी स्टॉप होता है तो उसमें भी लोग आगरा का पेठा खरीदने से नहीं चूकते हैं । पेठे के बारे में कई दंतकथाएं हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वर्ष 1632 में ताज महल के निर्माण के दौरान समय भीषण गर्मी में करीब 20 हजार मजदूर पत्थरों के बीच में काम करके जब बुरी तरह थक जाते थे, उस समय उनको तेज़ और तत्काल शक्ति देने के लिए पेठा दिया जाता था। एक अन्य प्रचलित किवदंती अनुसार शाहजहां की बेग़म मुमताज को पेठा बहुत पसंद था , बेग़म ने शाहजहां को अपने हाथों से पेठा बनाकर खिलाया था। शाहजहां को पेठे की मिठाई बहुत पसंद आई और उन्होंने अपनी शाही रसोई में इसे बनाने का ऐलान कर दिया था और वह 500 कारीगरों के माध्यम से अपनी रसोई में पेठा बनवाने लगे। आगे चलकर मजदूरों का यह फ़ास्ट टॉनिक तथा मुमताज की पसंद वाला पेठा आगरा की शान बन गया। आगरा में सबसे पुरानी दुकान, 1926 ईस्वी में स्वर्गीय पांचाल लाल गोयल (पंछी लाल जी) द्वारा 24 साल की उम्र में शुरू की गई थी, जिसे “पंची पेठा भंडार” कहा जाता है।